किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। धन निर्धन को देत सदाहीं । ज�
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। धन निर्धन को देत सदाहीं । ज�